योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस)/सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप (एसआरएफ) के संस्थापक परमहंस योगानन्दजी का महासमाधि दिवस 7 मार्च को और उनके गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि का महासमाधि दिवस 9 मार्च को मनाया जाएगा।
अपने जन्म के 129 वर्ष बाद भी आज श्री श्री परमहंस योगानन्दजी की गणना हमारे समय की परम विशिष्ट आध्यात्मिक विभूतियों में होती है। उनके बारे में कांचीपुरम के शंकराचार्य श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने लिखा है- “इस संसार में योगानन्दजी की उपस्थिति अंधकार के बीच चमकने वाले प्रकाश पुंज की तरह थी। ऐसी महान आत्मा का इस पृथ्वी पर आगमन विरले ही कभी होता है, जब मानव समाज में वास्तविक आवश्यकता हो।” योगानन्दजी और उनकी संस्था योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के सम्मान में भारत सरकार ने सबसे पहले सन 1977 में और दूसरी बार 7 मार्च 2017 को डाक टिकट जारी किए। योगानन्दजी के जीवन और उनकी शिक्षाओं का प्रभाव निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। पश्चिमी देशों में उन्हें “फादर ऑफ योगा” कहा जाता है। वे कहते थे कि आध्यात्मिक संस्थान मधु के छत्ते हैं और ईश्वरानुभूति मधु है। उनके प्रयासों और कार्यों से आज क्रियायोग पूरे संसार में फैल चुका है और उसका विस्तार लगातार हो रहा है। योगानन्दजी ने 1952 में महासमाधि ली थी।
योगानन्दजी के गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर के बारे में अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक डब्लू.वाई. इवांस-वेंट्ज ने लिखा है-“श्रीयुक्तेश्वरजी का स्वभाव कोमल और वाणी मृदु थी। उनकी उपस्थिति सुखद थी और अपने शिष्यों द्वारा अनायास आदर- प्रदान के वस्तुत: वे योग्य थे। जो कोई भी श्रीयुक्तेश्वरजी से परिचित था, भले ही वह किसी भी समाज- समुदाय का क्यों न हो, उन्हें अत्यंत आदर की दृष्टि से देखता था।” श्रीयुक्तेश्वरजी ने 1936 ईस्वी में अपना नश्वर शरीर त्याग कर महासमाधि ले ली थी। स्वामी श्रीयुक्तेश्वर जी ने महान गुरु महावतार बाबाजी के आदेश से एक कालजयी पुस्तक लिखी– “होली साइंस” (हिंदी अनुवाद-“कैवल्य दर्शनम”) जिसमें वेदों और बाइबिल की तुलना करते हुए आध्यात्म की सार्वभौमिकता को अत्यंत रोचक शैली में बताया गया है।
योगानन्दजी के महासमाधि लेने के बाद उनके पार्थिव शरीर में अनेक दिन बाद भी कोई विकृति देखने को नहीं मिली थी, जिससे फारेस्ट लान मेमोरियल (जहां उनका पार्थिव शरीर रखा गया था) के अधिकारी चकित थे। उन्होंने लिखा है- “परमहंस योगानन्दजी के पार्थिव शरीर में किसी भी प्रकार के विकार का लक्षण दिखाई न पड़ना हमारे लिए एक अत्यंत असाधारण और अपूर्व अनुभव है।… उनकी मृत्यु के बीस दिन बाद भी उनके शरीर में किसी भी प्रकार की विक्रिया नहीं दिखाई पड़ी। न तो त्वचा के रंग में किसी प्रकार के परिवर्तन के संकेत थे और न शरीर तंतुओं में शुष्कता ही आई प्रतीत होती थी।”
योगानन्दजी की लिखी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक “आटोबायोग्राफी ऑफ अ योगी” (हिंदी अनुवाद “योगी कथामृत”) के प्रकाशन के 75 वर्ष हो गए। योगानन्दजी की शिक्षाओं को शुद्ध रूप में प्रस्तुत करने के लिए उनके द्वारा योगदा सत्संग पाठमाला तैयार की गई हैं जो इच्छुक व्यक्तियों को डाक द्वारा नियमित रूप से घर बैठे मिल जाती हैं। सर्वविदित है कि वाईएसएस/एसआरएफ एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक व लोकोपकारी संस्था है जिसके द्वारा परमहंस योगानन्दजी की आत्म-साक्षात्कार प्रदायिनी क्रियायोग शिक्षाओं का प्रसार किया जाता है। योगदा सत्संग के इन पाठों और योगानन्दजी की लिखी पुस्तकों के माध्यम से वाईएसएस/एसआरएफ उनकी शिक्षाओं को शुद्ध रूप में प्रस्तुत करता है। अधिक जानकारी: www.yssofindia.org